फिर 2003 में रवि किशन की सैयां हमार और 2004 में मनोज तिवारी की ससुरा बड़ा पैसा वाला रिलीज हुईं. दोनों बेहद सफल रहीं. और इनसे रवि किशन और मनोज तिवारी का सुपर स्टारडम भी शुरू हुआ. इनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि आज रवि किशन गोरखपुर से सांसद हैं. तो निरहुआ ने अखिलेश यादव को आजम गढ़ से कड़ी टक्कर दी. और मनोज तिवारी दिल्ली में आज बी जे पी के मुख्य कर्ता धर्ता हैं. कल को अगर दिल्ली में बी जे पी सत्ता में आती है तो तो वे मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं. ये है भोजपुरी सिनेमा की नयी आसमान छूती लोकप्रियता - गोरखपुर से लेकर दिल्ली तक फैली हुई. गोरखपुर जो भोजपुरी का एक केंद्र है, में यह शक्ति तो समझ में आती है पर दिल्ली में ? दिल्ली बिहार और पूर्वांचल के श्रमिक समाज से भरा हुआ है. यही लोग हैं जो भोजपुरी फिल्में बिहार और यू पी में देखते हैं और दिल्ली में भी. पर इस देखने का मनोज तिवारी के दिल्ली बीजेपी का मुख्य नेता होने से क्या रिश्ता है ? इसी दिल्ली में 20 साल पहले बिहारी मजदूर को हिकारत से बीमारी कहा जाता था. उस बिहारी ने पहले अपने सिनेमा में अपना नायक पाया, फिर उसे सुपर स्टार बनाया. और इस कदर बनाया की हिंदी के बिग बॉस में क्रमशः रवि किशन, मनोज तिवारी और निरहुआ सभी गए. आज वही उर्प क्षत अपमानित बिहारी दिल्ली में मनोज तिवारी के रूप में अपने सम्मान की स्थापना देखता है. 2003-4 से भोजपुरी सिनेमा में आये इस बड़े उछाल को किस तरह समझा जाये ? कुछ लोग मानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि के नेतृत्व में दलित और पिछड़ी जातियों में आई राजनीतिक शक्ति और सत्ता भी इसका एक कारण है. जिसे लोग भदेस और छोटा समझते रहे थे, उसने इस राजनैतिक शक्ति से एक नया आत्म विश्वास प्राप्त किया. और अपनी पहचान को भोजपुरी सिनेमा में सेलेब्रेट करने लगा. भदेस शिष्ट को किनारे कर अपनी जगह बना रहा था. सेलेब्रेट करने की यह आर्थिक शक्ति उसे भूमंडलीकरण के कारण अर्थ व्यस्था में आई गतिशीलता और सम्पन्नता से मिली. एक तरफ मनरेगा था तो दूसरी तरफ बड़े शहरों में रोजगार के छोटे ही सही पर अनेक अवसर. अपना गाँव छोड़कर हैदराबाद से मुंबई तक में काम कर रहे इन अस्थायी विस्थापित श्रमिकों ने भोजपुरी सिनेमा को आक्सीजन की तरह इस्तेमाल किया. वह जैसा भी था उनका अपना था. वो दुनिया जिसे वे पीछे छोड़ आये थे और जो उन्हें रोज याद आती थी, अब भोजपुरी सिनेमा के माध्यम से उससे एक हलकी ही सही मुलाकात हो जाती थी. और इनकी जेब में अब इतने पैसे तो हो ही गए थे कि रविवार को सिंगल स्क्रीन थिएटर में, जहाँ टिकेट अब भी सस्ता था, भोजपुरी फिल्म देख लेते.
2003 में रवि किशन की सैयां हमार और 2004 में मनोज तिवारी की ससुरा बड़ा पैसा वाला रिलीज हुईं. दोनों बेहद सफल रहीं. और इनसे रवि किशन और मनोज तिवारी का सुपर स्टारडम भी शुरू हुआ